Love is not blind. Not standing up for it makes you blind.
Love is not blind. Not standing up for it makes you blind. Anjali Mukherjee Dev Bhoomi, like all stories, is a personal story- A…
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Introduction: Through the pandemic, we perfected the online medium, however, it had a few shortcomings- The practice session is a cure enabler and…
1. Ever since Chetna – all that was packed and stowed away is coming up like a shit storm. I am trying to commit myself…
In Estonia, there was a select gathering of leaders from all walks of life to share, exchange and debate ideas on, philosophy, the…
Naveen Sir came in my life a year and half ago. We happen to live in the same community in Bangalore. I came to know…
“I was certainly in the firm grip of the machinations of my own ego – my refusal let go – my emotions were bolted away…
“My spirit, my identity, my soul were frozen in a time capsule; I had left everything behind me because of one tragic moment. What stared at me…
प्रेम और अहंकार कभी साथ नहीं चल सकते|हम प्रेम ही तो हैं….इसको पाने की ज़िद और पा कर अहंकार होना माया ही तो है| ” तो क्या फिर मेरे अंदर का प्रेम सिर्फ एक भ्रम है? तो मतलब जो मैं चुनती हूँ वही सत्य हो गया मेरा ? हँसी आती है अपने आप पर जब इस सवाल को देखती हूँ| कभी अहंकार को प्रेम समझने की ग़लती कर अपने ही प्रेम स्वरूप का त्याग करने की भूल हम कर देते है| यही तो माया है| “ [signinlocker id=”326105″] स्वाहा–पॉन्डिचेरी प्रेम, सत्या और अहंकार किसी साँझ की सिन्दूरी शाम जैसे, प्रेम हर दिल को छू ही लेता है| प्रेम की माया ही ऐसी है| सांसो की कौन सी लय से धड़कन बन जाए पता ही नहीं चलता| हम भूल जाते है की प्रेम ने हमे पहले ही चुन लिया है तो हम प्रेम को कैसे चुन सकते है| वह तो है मेरे अंदर, कही बहुत भीतर– इस तरह छिपा हुआ, के स्वार्थ और मोह की परत उठालूँ तो सैलाब सा आ जायेगा| तो फिर किस बात का डर है? डूब जाने का? पर फिर किनारे भी कौन से मेरे है ? क्या है मुझ में ऐसा जो यह बांध टूट नहीं रहा? पता था पर अनजान बनने का अपना ही सुख है| प्रेम और अहंकार साथ-साथ नहीं चल सकते| पर प्रेम ने तो मुझे चुन लिया है और अहंकार जन्मों का संस्कार? उसने कहा तुम सत्य को जानो| मैंने कहा दोनों ही मेरे अंदर है? तो क्या फिर मेरे अंदर का प्रेम सिर्फ एक भ्रम है? तो मतलब जो मैं चुनती हूँ वही सत्य हो गया मेरा ? हँसी आती है अपने आप पर जब इस सवाल को देखती हूँ| कभी अहंकार को प्रेम समझने की ग़लती कर अपने ही प्रेम स्वरूप का त्याग करने की भूल हम कर देते है| यही तो माया है| अहंकार को प्रेम समझना और प्रेम को भूल जाना क्योंकि प्रेम कभी अहंकार का रूप ना ले पाया है और ना लेगा| प्रेम पाने की ज़िद ने अंदर के प्रेम को कभी बहने ही नहीं दिया| ना बेटी, ना बेहेन, ना बीवी ना प्रेमिका बन कर| जन्मों की एक चाह और ज़रूरतो को प्रेम का नाम देकर हम बाजार में बोली लगाने बैठ जाते हैं| अहंकार को प्रेम समझना ये भ्रम है| प्रेम तो तू है और यदि तू प्रेम नहीं तो कुछ भी सत्य नहीं है| प्रेम के दर्द को महसूस कर| पर ये होता कैसा है ? तेरी सांसों जैसा, जिनकी ख़ुशबू तो महसूस होती है पर मैं अपने अंदर भर नहीं सकती| तेरे स्पर्श जैसा जो तेरे ना होने पर भी महसूस होता है| तेरी नज़रों जैसा जो ना होने पर भी मुझे देखती है| के तू दीखता तो है पर कही नज़र नहीं आता| के शिकायत है तुझसे पर दिल दुआ भी तेरी ही मांगता है| शुक्रिया तेरा के तुझसे गुज़रते मेरे दिल ने प्रेम का अनुभव तो किया| शायद इससे यूँही गुज़रते हुए एक दिन मैं प्रेम बन जाऊँ| तो अहंकार को प्रेम समझने की ज़िद छूट जाए| स्वार्थ और मोह की परत उठ जाए| इस पूरी यात्रा में पीछे मुड़ कर देखती हूँ तो अपने लिए बस प्रेम ही दीखता है| …
“My stubbornness was not allowing me to attract love. I failed to recognize unconditional love and saw purpose behind it which threatened my belief system.…
“Nature of belief is to search for certainty, and we have accumulated infinite belief over various lifetimes, coded as the tendencies in our soul…. In…
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