यही तो माया है|
प्रेम और अहंकार कभी साथ नहीं चल सकते|हम प्रेम ही तो हैं….इसको पाने की ज़िद और पा कर अहंकार होना माया ही तो है| ” तो क्या फिर मेरे अंदर का प्रेम सिर्फ एक भ्रम है? तो मतलब जो मैं चुनती हूँ वही सत्य हो गया मेरा ? हँसी आती है अपने आप पर जब इस सवाल को देखती हूँ| कभी अहंकार को प्रेम समझने की ग़लती कर अपने ही प्रेम स्वरूप का त्याग करने की भूल हम कर देते है| यही तो माया है| “ [signinlocker id=”326105″] स्वाहा–पॉन्डिचेरी प्रेम, सत्या और अहंकार किसी साँझ की सिन्दूरी शाम जैसे, प्रेम हर दिल को छू ही लेता है| प्रेम की माया ही ऐसी है| सांसो की कौन सी लय से धड़कन बन जाए पता ही नहीं चलता| हम भूल जाते है की प्रेम ने हमे पहले ही चुन लिया है तो हम प्रेम को कैसे चुन सकते है| वह तो है मेरे अंदर, कही बहुत भीतर– इस तरह छिपा हुआ, के स्वार्थ और मोह की परत उठालूँ तो सैलाब सा आ जायेगा| तो फिर किस बात का डर है? डूब जाने का? पर फिर किनारे भी कौन से मेरे है ? क्या है मुझ में ऐसा जो यह बांध टूट नहीं रहा? पता था पर अनजान बनने का अपना ही सुख है| प्रेम और अहंकार साथ-साथ नहीं चल सकते| पर प्रेम ने तो मुझे चुन लिया है और अहंकार जन्मों का संस्कार? उसने कहा तुम सत्य को जानो| मैंने कहा दोनों ही मेरे अंदर है? तो क्या फिर मेरे अंदर का प्रेम सिर्फ एक भ्रम है? तो मतलब जो मैं चुनती हूँ वही सत्य हो गया मेरा ? हँसी आती है अपने आप पर जब इस सवाल को देखती हूँ| कभी अहंकार को प्रेम समझने की ग़लती कर अपने ही प्रेम स्वरूप का त्याग करने की भूल हम कर देते है| यही तो माया है| अहंकार को प्रेम समझना और प्रेम को भूल जाना क्योंकि प्रेम कभी अहंकार का रूप ना ले पाया है और ना लेगा| प्रेम पाने की ज़िद ने अंदर के प्रेम को कभी बहने ही नहीं दिया| ना बेटी, ना बेहेन, ना बीवी ना प्रेमिका बन कर| जन्मों की एक चाह और ज़रूरतो को प्रेम का नाम देकर हम बाजार में बोली लगाने बैठ जाते हैं| अहंकार को प्रेम समझना ये भ्रम है| प्रेम तो तू है और यदि तू प्रेम नहीं तो कुछ भी सत्य नहीं है| प्रेम के दर्द को महसूस कर| पर ये होता कैसा है ? तेरी सांसों जैसा, जिनकी ख़ुशबू तो महसूस होती है पर मैं अपने अंदर भर नहीं सकती| तेरे स्पर्श जैसा जो तेरे ना होने पर भी महसूस होता है| तेरी नज़रों जैसा जो ना होने पर भी मुझे देखती है| के तू दीखता तो है पर कही नज़र नहीं आता| के शिकायत है तुझसे पर दिल दुआ भी तेरी ही मांगता है| शुक्रिया तेरा के तुझसे गुज़रते मेरे दिल ने प्रेम का अनुभव तो किया| शायद इससे यूँही गुज़रते हुए एक दिन मैं प्रेम बन जाऊँ| तो अहंकार को प्रेम समझने की ज़िद छूट जाए| स्वार्थ और मोह की परत उठ जाए| इस पूरी यात्रा में पीछे मुड़ कर देखती हूँ तो अपने लिए बस प्रेम ही दीखता है| …